समुद्रशोख की बेल अकसर वनों , गांवों के नजदीक और घर - आंगनों में दिखाई देती है । गुलाबी रंगों के फूल लिए ये बेल औषधीय गुणों का खजाना है ।
इसकी पत्तियों को कुचलकर दाद - खाज से ग्रस्त अंगों पर लगाया जाए तो जल्द आराम मिलने लगता है । आधुनिक शोधों से जानकारी मिलती है कि त्वचा पर संक्रमणकरनेवाले अनेक सूक्ष्मजीवों के नाश के लिए इसकी पत्तियां बेहद कारगर होती हैं ।
शरीर में ताकत और ऊर्जा के लिए समुद्रशोख की जड़ों का चूर्ण बनाया जाए और इसकी 3 - 4 ग्राम मात्रा को शहद के साथ प्रतिदिन दो बार लिया जाए तो काफी असरकारक होता है ।
इसकी जड़ों का चूर्ण शहद के साथ लेने से यह नपुंसकता को दूरकरता है । और शुक्राणुओं की कमी होने की दशा में 5 ग्राम चूर्ण असरकारक होता है ।
जोड़ दर्द और आर्थराइटिस होने पर जड़ों को तिल के तेल में फ्राईकर और छानकर तेल को दर्दवाले हिस्सों पर लगाया जाए तो दर्द में तेजी से राहत मिलती है ।
घुटनों में सूजन होने पर समुद्रशोख की जड़ों के चूर्ण और चावल की मांड का मिश्रण घुटनों पर लगाया जाए और दो घंटे बाद धो लिया जाए , तो आराम मिलने लगता है ।
जड़ों का चूर्ण बनाकर पके हुए चावल के साथ लेने से हाथीपांव रोग में राहत मिलती है ।
फोड़े - फुसी हो जाने पर समुद्रशोख की पत्तियों को पानी में उबालकर और उबले पानी के ठंडा होने पर उससे फोड़े - फुसियोंवाले अंगों को धोने से काफी आराम मिलता है । एक सप्ताह तक दिन में कम - से - कम 2 बार ऐसाकरने से पुराने फोड़े - फुसियां सूख जाती हैं ।
घावों को पकाने के लिए इसकी पत्तियों को घावों पर लगाकर पत्तियों की ऊपरी सतह पर नारियल का तेल लगा दिया जाता है । घाव के पक जाने पर कुछ समय में यह फूट जाता है और धीरे - धीरे सूखने लगता है ।
शरीर के अंगों के जलने पर समुद्रशोख की ताजी हरी पत्तियों को जले हुए हिस्से पर चिपका दिया जाए तो तुरंत ठंडक मिल जाती है और जले हुए अंग पर बैक्टीरियल संक्रमण भी नहीं होता है ।
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